बच्चों को जन्म लेते ही जॉन्डिस बीमारी क्यों हो जाता है ?Why do children get jaundice as soon as they are born?
चलिए जानते हैं इस लेख के माध्यम से कुछ बच्चों में जन्म लेने के बाद ही जॉन्डिस बिमारी क्यों हो जाता है। क्यों होता है इस बात को आप बहुत सरल भाषा में समझे। एक्सपर्ट के मुताबिक महिलाएं जब बच्चों को जन्म देती है उनमें से कुछ बच्चों को जॉन्डिस बिमारी इसलिए हो जाता है, क्योंकि बच्चों में बिलीरुबिन नामक पदार्थ बहुत ही ज्यादा मात्रा में बनता है। क्योंकि बच्चों में लाल रक्त कोशिकाएं के जीवन काल बड़ों से बहुत कम होता है, जिसके चलते बच्चों में लाल रक्त कोशिकाएं बहुत ज्यादा मात्रा में टुटते हैं। इसलिए बच्चों में बिलीरुबिन नामक पदार्थ बहुत सारे बनते हैं। और बिलीरुबिन ज्यादा बढ़ जाने के कराण ही जॉन्डिस बिमारी जन्म लेते ही और कुछ बच्चों में हो जाता है। मतलब जितना अधिक लाल रक्त टूटे गा उतना ही अधिक बच्चों में बिलिरुबिन बढ़ने लगता है। जिसके चलते पिलाया बिमारी होता है।
नवजात शिशुओं में पीलिया क्या है ? (What is jaundice in new born?)
बहुत सारे जानकारों के मुताबिक नवजात शिशुओं में पीलिया बिमारी एक आम बिमारी माना जाता है। क्योंकि नवजात शिशुओं को जन्म लेने के बाद बहुत सारे बच्चों में 2 या तीन दिन के बाद उनके आंखें के सफेद भाग में या चहरे पर पिला हो जाता है। क्योंकि नवजात शिशुओं में लिवर सही से विकसित नहीं रहते हैं, जिसके चलते रक्त में बढ़े हुए बिलीरुबिन नामक पदार्थ को संभाल नहीं पाती है। जिसके कारण पीलिया नामक बिमारी हो जाता है। जो कि नवजात शिशुओं में पीलिया बहुत आम बिमारी माना जाता है। और आप और सरल भाषा में समझें बच्चों के लीवर सही से तैयार नहीं रहते हैं जिसके कारण शरीर से बिलीरुबिन नामक पदार्थ को बहार मल के द्वारा ज्यादा मात्रा में नहीं निकाल पाते हैं। जिसके चलते नवजात शिशुओं को पीलिया बिमारी होता है।
बच्चों में जॉन्डिस बिमारी दो प्रकार का होता है ? (Thare are Two types jaundice in children ?)
एक्सपर्ट के मुताबिक नवजात शिशुओं में जॉन्डिस बिमारी दो प्रकार के होते हैं। बहुत सारे खोज बीन के बाद पता चला की सही में बच्चों में दो प्रकार के पीलिया बीमारी होता है। दोनों पीलिया बिमारी को अलग अलग नाम से जाना जाता है। जैसे में की 1) शारीरिक पीलिया बिमारी 2) रोगजनक जॉन्डिस
1) शारीरिक जॉन्डिस
एक्सपर्ट के मुताबिक शारीरिक जॉन्डिस बिमारी एक नॉर्मल बिमारी माना जाता है। यह बिमारी नवजात शिशुओं में देखने को मिलता है। नवजात शिशुओं को जन्म लेने के बाद ही शारीरिक पिलाया बिमारी होता है। एवं दो से लेकर तीन के अंदर ही देखने को मिलता है। क्योंकि नवजात शिशुओं में बिलीरुबिन नामक पदार्थ बहुत तेजी से बनता है। क्योंकि नवजात शिशुओं में लाल रक्त कोशिकाएं बहुत ज्यादा ही मात्रा में टुटते हैं। जिसके चलते शरीर में बिलीरुबिन बढ़ने लगता है। और शारीरिक पिलाया बिमारी अपने आप ही एक या दो हफ्ते में ही ठीक भी हो जाता है। और शारीरिक पिलाया बिमारी को मैडीकल भाषा में फिजियोलॉजिकल जॉन्डिस बिमारी के नाम से जाना जाता है। अगर शारीरिक पिलाया बिमारी एक से लेकर दो हफ्ते के अंदर ठीक नहीं होता है। तो तूरंत अपने नवजात शिशु को लेकर किसी डॉक्टर से संपर्क कर लेना चाहिए।
2) रोगजनक जॉन्डिस
रोगजनक जॉन्डिस बिमारी यह कोई साधारण बिमारी नहीं होता है। रोगजनक जॉन्डिस बिमारी शरीर में बहुत सारे संक्रमण के कारण होता है। रोगजनक पिलाया बिमारी तब होता है जब लिवर सही से काम नहीं करते हैं।और जब पीत नली में कोई रूकावट आ जाता है। क्योंकि पित नली में रुकावट होने से ही बिलीरुबिन नामक पदार्थ शरीर से बहार नहीं निकल पाता है, एक्सपर्ट के मुताबिक महिलाएं जब अपने बच्चों को जन्म देती है। उस समय शरीर में कितना बिलीरुबिन होने चाहिए। क्योंकि नवजात शिशुओं में जन्म के समय बिलीरुबिन नामक पदार्थ के मात्रा कम से कम 2 से लेकर 3 mg/dl होना चाहिए। यह मात्रा नवजात शिशुओं के लिए एक दम सही है। अगर 2 से लेकर 3 mg/dl से अधिक हो जाता है,तो शारीरिक जॉन्डिस बिमारी कहलाते है । जो कि शारीरिक पिलाया एक नोर्मल जॉन्डिस बिमारी कहलाते हैं।
नवजात शिशुओं में जन्म लेने के समय बिलीरुबिन कितने होने चाहिये ?
एक्सपर्ट के मुताबिक नवजात शिशुओं में जन्म लेने के समय बिलीरुबिन नामक पदार्थ के मात्रा एकदम से पर्याप्त मात्रा में होने चाहिये। इसलिए एक्सपर्ट के मुताबिक जब कोई महिला अपने बच्चे को जन्म देती है उस समय उस बच्चे के बिलीरुबिन नामक पदार्थ के मात्रा कम से कम 2 से लेकर 3 mg/dl तक ही होना चाहिए,अगर कोई बच्चे जन्म के समय 3 mg/dl से अधिक मात्रा में होता है तो,वह शारीरिक जॉन्डिस कहलाते हैं। जो कि शारीरिक जॉन्डिस अपने आप ठीक हो जाता है।
Disclaimer: इस आर्टिकल में बताई गई दावों की health paswanblog live पुष्टि नहीं करता है। केवल सुझाव के रूप में लें. इस तरह के किसी भी उपचार/दवा/डाइट पर अमल करने से पहले डॉक्टर की सलाह जरूर लें.
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